हम लोग दैनिक जीवन की मामूली से मामूली बातों में देख सकते हैं की स्ट्रेस करने से थकान महसूस होती है , एनर्जी लेवल डाउन होता है और काम बिगड़ जाता है
धन्यवाद व्यक्त करना, ध्यान केंद्रित करना, और दूसरों की मदद करने का प्रयास करना एक शांत और खुश व्यक्ति के लिए आधार बनता है। लंबे समय तक द्वेष पालना, नकारात्मक विचारों का मनोरंजन करना, और अनैतिक व्यवहार न केवल मन को अशांत करता है बल्कि असंतोष का भी कारण बनता है।
कर्म कितने प्रकार के होते हैं? किस प्रकार संचित कर्म जुड़ा होता है मनुष्य के भाग्य से?
कर्म एक ऐसा सिद्धांत है जो भाग्य को समझने में मदद करता है। हम मानते हैं कि केवल हमारे कार्य ही कर्म हैं, जबकि हमारे द्वारा सोचे गए हर विचार और बोले गए हर शब्द भी कर्म के निर्माण में भूमिका निभाते हैं। “जैसा मेरा कर्म, वैसा मेरा check here भाग्य।” यही वह नियम है जो हर व्यक्ति के भाग्य को निर्धारित करता है। कर्म को समझना हमें यह समझने में मदद कर सकता है कि प्रत्येक कार्य, शब्द और विचार का एक परिणाम होता है और यह हमें बेहतर बनने के लिए प्रेरित करता है।
स्वास्थ्यमुंह की बदबू ने कर रखा है परेशान, आजमाएं ये घरेलू नुस्खे
कर्म से भाग्य बनता है और ये भाग्य हमें ऐसी परिस्तिथियों में डालता रहता है जहाँ हम कर्म कर के विजयी सिद्ध हों या परिस्तिथियों के आगे हार मान कर हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे और बिना लड़े ही पराजय स्वीकार कर लें
क्या हर चाय वाला इतना करता है
जरा गौर करियेगा की हम कहाँ – कहाँ भाग्य को दोष देते हैं पर हमारा वो भाग्य किसी कर्म का परिणाम होता है
‘भाग्य और कर्म दोनों का ही महत्त्व है और अपनी अपनी विशेषतायें, मगर हमें समझना चाहिए की हम भाग्य के सहारे नहीं बैठ सकते। अगर हम भाग्य पर सब कुछ छोड़ दें तो कर्म का कोई महत्त्व ही नहीं रह जाएगा ।
quite pleasant effert gopal ji . सभी participents को बहुत बहुत धन्यवाद l
मैं बड़े ही असमंजस में पढ़ गया और कुछ और हिम्मत जुटा कर बोला।
आचार्य जी-नहीं, न ज्योतिष सीखना समय की बर्बादी है और न ही उसका लाभ उठाना। मगर हमें यह जानना अति आवश्यक है कि हम कर्म और भाग्य दोनों के महत्त्व को समझें और जान सकें, वरना ज्योतिष सीख कर भी तुम ऐसे सवालों का जवाब किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं दे पाओगे जो इसमें फर्क समझना चाहता है।
कर्म की मुख्य अवधारणा यह है कि सकारात्मक कार्य से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है और नकारात्मक कार्य का परिणाम नकारात्मक होता है। इन दोनों के बीच कारणिक संबंध व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति को शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक दृष्टि से प्रतिदिन निर्धारित करता है।